पंख
कायांतरण ये आख़री है
पंखों में रंगत बिखरी है
वो शरारत करते चंचल पल
न पकड़ो इन्हे की
टूट जाएंगे ये कोमल पंख
पर वक़्त ने बदला है
हमको इतना
अब न होगा विचलित ये मन
कुछ दिन उड़ेगा यूँ ही
फिर पुरना हो जायेंगे
ये टूटे मेरे पंख ||
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